Thursday, November 21, 2024
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Kab hai Bahula Chauth 2023?

Kab hai Bahula Chauth 2023?

कब है बहुला चौथ 2023

बहुला चौथ 2023 – रविवार, 03 सितंबर

भादौ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को “बहुला चतुर्थी” या “बहुला चौथ” के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश के निमित्त व्रत किया जाता है। वर्ष की प्रमुख चार चतुर्थी में से यह भी एक है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों की रक्षा हेतु कामना करती हैं। बहुला चतुर्थी के दिन गेहूँ और चावल से निर्मित वस्तुएँ भोजन में ग्रहण करना वर्जित है। गाय और शेर की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।

Kab hai Bahula Chauth 2023?
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बहुला व्रत विधि:

इस दिन, सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद स्नान आदि करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए। व्रती को पूरा दिन निराहार रहना पड़ता है। संध्या काल में गाय माता और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और इन्हें संध्या काल में गाय माता को भोग लगाया जाता है। कुछ भागों में जौ और सत्तू का भोग भी लगाया जाता है। बाद में, इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं। इस दिन, गाय और सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है।

संध्या के समय, पूरे विधि-विधान से पहले पूजनीय भगवान गणेश की पूजा की जाती है। रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर, उन्हें अर्ध्य दिया जाता है। कई स्थानों पर, शंख में दूध, सुपारी, गंध, और अक्षत (चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्ध्य दिया जाता है। इस प्रकार, जो भी व्यक्ति इस संकष्ट चतुर्थी का पालन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है। जो व्यक्ति संतान के लिए व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें संकट, विघ्न, और सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।

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व्रत कथा

बहुला चतुर्थी व्रत की कथा इस प्रकार है-

किसी ब्राह्मण के घर में बहुला नामक एक गाय थी। बहुला गाय का एक बछड़ा था। बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो उसका बछड़ा व्याकुल हो उठता था। एक दिन बहुला घास चरते हुए अपने झुण्ड से बिछड़ गई और जंगल में काफ़ी दूर निकल गई| जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूँखार शेर आ गया। शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछड़ा सुबह से उसकी राह देख रहा है। वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊँगी, तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना।
शेर को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आएगी। तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरूर आएगी। शेर से बहुला को उसके बछड़े के पास वापिस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुँची। अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसे बहुत चाटा-चूमा। उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई। शेर को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई। बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापिस घर जाने दिया। बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी। तभी से बहुला चौथ का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है।

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बहुला चौथ कथा (Bahula Chauth Vrat Katha )

बहुला चतुर्थी की कथा में गाय और शेर के मध्य की मार्मिक कहानी बेहद प्रचलित हैं. कृष्ण जी ने अवतार के बाद बचपन और युवावस्था तक कई रास-लीलाए की. बड़े होने के पश्चात वे गायो के ग्वाले बन जाते हैं.

पिता नन्द बाबा की गौशाला से उनको गाय का एक छोटा सा बछड़ा उनका मन मोह लेता हैं. अब कृष्ण अपना अधिकतर समय इसी बहुला नामक गाय के साथ ही बिताते थे. जब वे गाये चारने जाते तो यह भी उनके साथ ही रहता था.

एक दिन कृष्ण बहुला की परीक्षा लेने के लिए जहाँ वह चरने जाती हैं, उपस्थित होकर उनका शिकार करने का बहाना करके आगे बढ़ते हैं, कि बहुला कहती हैं. मेरा बछड़ा सुबह से भूखा प्यासा हैं, मुझे उन्हें दूध पिलाने एक बार वापिस जाने दो. मै वापिस लौट आऊ तक मेरा भक्षण कर लेना.

इस बात पर बड़ी मुश्किल से कसम खाकर वह शेर से वापिस घर आने की अनुमति लेती हैं. नन्द की गौशाला आने के बाद बहुला अपने बछड़े को खूब प्यार दुलार कर दूध पिलाकर वापिस उस शेर की मांद पर जाती हैं. अपने वचन के मुताबिक वह शेर से कहती हैं. अब मेरा शिकार कर अपनी भूख मिटा लो.

तभी भगवान् कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट होते हैं और बहुला से कहते हैं. बहुला ये तो तुम्हारी परीक्षा थी, आज तुम अपनी इस परीक्षा में सफल हुई. मै तुम्हे वर देता हु,, भादों की कृष्ण चतुर्थी आज से बहुला चतुर्थी के रूप में जानी जाएगी.

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Ankita Dixit
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