Hartalika Teej Vrat 2023, Katha And Pooja Vidhi In Hindi
हरतालिका तीज महत्व (Hartalika Teej Mahtva)
हरितालिका तीज व्रत हिन्दू धर्म में महिलाओं द्वारा उत्सवपूर्ण रूप से मनाया जाने वाला व्रत है और इसे हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तीसरी तारीक को आयोजित किया जाता है। इसे हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख तीज व्रतों में से एक माना जाता है, और यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा धार्मिक और सामाजिक महत्व के साथ मनाया जाता है। इसका विशेष महत्व छोटी उम्र की लड़कियों के लिए भी है। हरतालिका तीज पर भगवान शिव, माता गौरी, और गणेश जी की पूजा की जाती है और इस व्रत को निराहार और निर्जला रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही, इस व्रत को रात भर जाग कर नाच-गाने के साथ आनंदित रूप से मनाया जाता है।
For English :- When is Haritalika Teej 2023?
हरतालिका नाम क्यों पड़ा?
माता गौरी, जो पर्वती रूप में थी, वह शिव जी को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने काठी तपस्या की थी। उस समय, पार्वती की सखियाँ ने उन्हें अपहरण कर लिया था। इसी कारण इस व्रत को हरतालिका कहा गया है, क्योंकि “हरत” का मतलब होता है अपहरण करना और “आलिका” का मतलब होता है सखी या सहेली, जिससे यह नाम प्राप्त हुआ।
कुछ युवा कन्याएं इस व्रत को विधिवत रूप से करती हैं ताकि वे शिव जैसा पति प्राप्त कर सकें।
हरतालिका तीज मुहूर्त क्या है (Hartalika Teej Muhurt)
पूजा मुहूर्त | सुबह 6:05 बजे से सुबह 8:34 बजे तक |
प्रदोषकाल हरतालिका तीज व्रत पूजा मुहूर्त | शाम 6:33 बजे से 8:51 बजे तक |
हरतालिका तीज व्रत नियम (Hartalika Teej Vrat Rules)
- हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता.
- हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता हैं .इसे विधवा महिलायें भी कर सकती हैं.
- हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता . इसे प्रति वर्ष पुरे नियमो के साथ किया जाता हैं.
- हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं. पूरी रात महिलायें एकत्र होकर नाच गाना एवम भजन करती हैं. नये वस्त्र पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं.
- हरतालिका व्रत जिस घर में भी होता हैं. वहाँ इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता हैं.
- सामान्यतह महिलायें यह हरतालिका पूजन मंदिर में करती हैं.
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हरतालिका के व्रत से जुड़ी कई मान्यता हैं, जिनमे इस व्रत के दौरान जो सोती हैं, वो अगले जन्म में अजगर बनती हैं, जो दूध पीती हैं, वो सर्पिनी बनती हैं, जो व्रत नही करती वो विधवा बनती हैं, जो शक्कर खाती हैं मक्खी बनती हैं, जो मांस खाती शेरनी बनती हैं, जो जल पीती हैं वो मछली बनती हैं, जो अन्न खाती हैं वो सुअरी बनती हैं जो फल खाती है वो बकरी बनती हैं. इस प्रकार के कई मत सुनने को मिलते हैं.
हरतालिका पूजन सामग्री (Hartalika Teej Puja Samgri List)
- फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता.
- गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत
- केले का पत्ता
- सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते
- बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी.
- जनैव, नाडा, वस्त्र,
- माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहँदी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं . इसके अलावा बाजारों में सुहाग पुड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं.
- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश.
- पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद.
हरतालिका तीज पूजन विधि (Hartalika Teej Pujan Vidhi)
- हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं. प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय.
- हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं.
- फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं. उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं.
- चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं. उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं.
- तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं. सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं. उसके उपर श्रीफल रखते हैं. अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं. घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं. घड़े पर सातिया बनाकर उर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं.
- कलश का पूजन किया जाता हैं. सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं. कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं. उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं.
- कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं. उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं. उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं.
- इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं. फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं.
- पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा की जाती हैं. रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं.
- सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं. उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं.
- ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं. उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं.
- अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं .
हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Vrta Katha or Story)
यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं.
शिव जी ने माता पार्वती को विस्तार से इस व्रत का महत्व समझाया – माता गौरा ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया . बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में चाहती थी. जिसके लिए पार्वती जी ने कठोर ताप किया उन्होंने कड़कती ठण्ड में पानी में खड़े रहकर, गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर यज्ञ किया. बारिश में जल में रहकर कठोर तपस्या की. बारह वर्षो तक निराहार पत्तो को खाकर पार्वती जी ने व्रत किया. उनकी इस निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान् विष्णु ने हिमालय से पार्वती जी का हाथ विवाह हेतु माँगा. जिससे हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. और पार्वती को विवाह की बात बताई. जिससे पार्वती दुखी हो गई. और अपनी व्यथा सखी से कही और जीवन त्याग देने की बात कहने लगी. जिस पर सखी ने कहा यह वक्त ऐसी सोच का नहीं हैं और सखी पार्वती को हर कर वन में ले गई. जहाँ पार्वती ने छिपकर तपस्या की. जहाँ पार्वती को शिव ने आशीवाद दिया और पति रूप में मिलने का वर दिया.
हिमालय ने बहुत खोजा पर पार्वती ना मिली. बहुत वक्त बाद जब पार्वती मिली तब हिमालय ने इस दुःख एवं तपस्या का कारण पूछा तब पार्वती ने अपने दिल की बात पिता से कही. इसके बाद पुत्री हठ के करण पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह शिव जी से तय किया.
इस प्रकार हरतालिक व्रत अवम पूजन प्रति वर्ष भादो की शुक्ल तृतीया को किया जाता हैं .
FAQ
Ans : भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को.
Ans : 18 सितंबर दिन सोमवार
Ans : स्त्रियाँ
Ans : सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु के लिए एवं कुंवारी स्त्रियाँ भगवान शिव जैसा पति प्राप्त करने की इच्छा से.
Ans : शाम 6:33 बजे से 8:51 बजे तक