Rishi Panchami 2024: कब है ऋषि पंचमी? जानें डेट, शुभ मुहूर्त, पूजाविधि और कथा
प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पंचमी तिथि को हम ऋषि पंचमी का आयोजन करते हैं। हिन्दू धर्म में, ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं द्वारा अकस्मात हुई गलतियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए एक उत्तम तरीका माना जाता है।
प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हम ऋषि पंचमी मनाते हैं। इस व्रत को महिलाओं के लिए विशेष महत्व दिया जाता है। धारण किया जाता है कि ऋषि पंचमी का व्रत व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कराता है। इस व्रत के दौरान, सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि महिलाओं के लिए ऋषि पंचमी का व्रत बेहद फलदायी होता है। इस व्रत से भक्तों के सभी पाप नष्ट होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चलिए, ऋषि पंचमी की तारीख का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व जानते हैं।
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कब है ऋषि पंचमी 2024? पूजा का शुभ मुहूर्त ?
पंचमी तिथि का आरंभ 7 सितंबर को शाम में 5 बजकर 38 मिनट से पंचमी तिथि का आरंभ।
8 सितंबर को शाम में 7 बजकर 59 मिनट पर पंचमी तिथि समाप्त।
8 सितंबर के दिन स्वाति नक्षत्र बना रहेगा। साथ ही आज चंद्रमा तुला राशि में स्थिर लग्न और नक्षत्र है। कोई भी नया काम शुरु करना या व्रत करना शुभ रहता है। सूर्योदय के समय सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। रवि योग,
ऋषि पंचमी की पूजाविधि:
पूजा करने से पहले धूप, दीप, घी, फल, फूल और पंचामृत समेत सभी पूजन सामर्गी एकत्रित कर लें।
घर के मंदिर को साफ करें। एक छोटी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर ऋषियों या अपने गुरु की तस्वीर रखें।
अब उन्हें फल, फूल, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
सप्त ऋषियों से अपनी किसी भी गलती के लिए माफी मांगें।
इसके बाद उनकी आरती उतारें और लोगों को प्रसाद बांट दें।
इस दिन घर के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद जरूर लें।
क्यों खास हैं ऋषि पंचमी व्रत?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक धर्म में महिलाओं द्वारा धर्म-कर्म के कार्यों को वर्जित माना गया है। कहा जाता है कि मासिक धर्म के दौरान जाने-अनजाने किए गए धार्मिक कार्यों से रजस्वला दोष लगता है। रजस्वला दोष से छुटकारा पाने के लिए महिलाओं को ऋषि पंचमी का व्रत करना बेहद शुभ माना जाता है।
ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha)-
ऋषि पंचमी कथा-1
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत पतिव्रता थी।
एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई।उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।
इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा।वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए।
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी।पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी।
बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी।चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।
रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।
तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा।मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।
अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो।
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना।इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।
ऋषि पंचमी कथा – 2
विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी।विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।
धर्मशास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है।यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।
पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।
ऋषि पंचमी कथा – 3
एक बार संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्मण और ब्राह्मणी सप्त ऋषि का व्रत किया करते थे और जब उन्हें संतान के रूप में बेटी की प्राप्ति हुई तो वह उसे भी यह व्रत कराने लग गये इसके बाद उन्होंने उसकी शादी भी ऐसे आदमी से की जो उनके घर में घर जमाई बनके रहे दोनों ससुर दामाद एक साथ खेती का काम करने लग गये ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से बोल दिया की तू मेरे लिए खीर लाया कर और जमाई के लिए राबड़ी, ब्राह्मणी भी ऐसा ही करने लगी। जब एक दिन ब्राह्मण को काम की वजह से बाहर जाना पड़ा तो ब्राह्मणी खाना लेकर आई और जमाई से बोली की एक हांड़ी में खाना आपके ससुर का और दूसरी में आपका है यह सुन जमाई ने सोचा की ऐसा ससुर के लिए क्या लायी है जो ये बात बोलके गयी की यह आपका और यह आपके ससुर का है।
जमाई ने ससुर की हांड़ी खोलकर देखी तो खीर को देख उसका मन ललचाने लगा और उसने खीर खा ली जब ब्राह्मण आया और उसने पाया की खीर जमाई ने खा ली है तो उसने गुस्से में आकर कुल्हाड़ी से जमाई के सात टुकड़े कर दिए और उन्हें सात अलग जगह पर छिपा दिए ब्राह्मण की बेटी का पति तीन दिन से घर नहीं आया तो सप्त ऋषियो ने सोचा की इसका व्रत खुलवाना जरूरी है इसके लिए उन्होंने साथ अलग अलग जानवरों का वेश बनाया और उसके टुकडो को ढूढ उसे जीवित किया और उसे बता भी दिया की तुम्हे अपना सास ससुर के साथ नहीं रहना चाहिए और उसने ऐसा ही किया। वह अपने सास ससुर से अलग रहने लग गये। ये सब उसकी पत्नी के व्रत करने के प्रताप से संभव हो सका।
ऋषि पंचमी के दिन यदि आप निम्न लिखित मन्त्र का उच्चारण कर पाए तो शुभ फल दायी होगा अन्यथा इस मन्त्र को आप सफ़ेद कागज़ पर पीले रंग से लिख कर घर के मुख्य द्वार पर अंदर की तरफ लगा सकते है| यह मंत्र घर में रह रहे लगो के मन व् बुद्धि में आध्यात्मिकता बनाने में सफल होगा| अगर आपसे जाने अनजाने किसी ऋषि,मुनि, भ्रामिन के लिए कोई अपशब्द या भूल से अपमान हुआ है तो उस से लगे कार्मिक दोष को मिटाने के लिए भी ये मंत्र सहायक होगा|
‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥